ये छोटी कहानी (chhoti Kahani) है एक सूफी फकीर की श्रद्धा की। जो की अपनी एक छोटी सी झोपड़ी में जंगल में रहता था। हर वक्त खुदा की ईबादत में व्यस्त रहता था।
एक दिन वहां से एक वैद्य गुज़र रहा था। वैद्य उस झोपड़ी के पास आकर रास्ता ठीक से पता न लगा पाया, जहां उसको जाना था। पास में झोपड़ी के बाहर बैठे सूफी फकीर को देखा तो सोचा की उसी से रास्ता मालूम कर लिया जाए।
वैद्य जब फकीर से रास्ता पूछ रहा था तो उसकी नज़र फकीर के एक जख्म पर गई जो की उसकी टांगें था। जख्म में कीड़े पड़ चुके थे। वैद्य ने फकीर से कहा की मैं आपके जख्म का इलाज कर देता हूं, वरना ये जख्म आपको मार डालेगा। फकीर बोला रहने दो। वैद्य ने सोचा की फकीर के पास शायद पैसे नहीं हैं, इसलिए इलाज के लिए मना कर रहा है। वैद्य बोला कि आप पैसे की चिंता मत करिए, में आपका इलाज़ मुफ्त में कर दूंगा, आपने मुझे रास्ता बताया है, आपके लिए इतना छोटा सा काम तो मैं कर ही सकता हूं।
वैद्य के बार बार कहने पर भी फकीर मना ही करता रहा। अंत में वैद्य ने इलाज न करवाने का कारण पूछा। फकीर बोला की इस जख्म में जो कीड़े हैं वो मेरे जख्म में ही जिंदा रह सकते हैं और ये पूरी रहा से मेरे शरीर पर आश्रित हैं। इन बेचारों का मेरे बिना कोई नहीं है। तुमने इनको जख्म में से निकाल दिया तो ये कुछ ही देर में मार जाएंगे। और रही बात मेरी मौत की, वो तो एक दिन आनी ही है, तो मैं इन कीड़ों की मौत का कारण क्यों बनू। वैद्य फकीर की जीवन के प्रति श्रद्धा देख कर नत्मस्तक हो गया।
तो दोस्तों मुझे पता है की आप लोग इस छोटी कहानी (chhoti kahani) के बारे में क्या सोच रहे हैं। यदि साधारण तौर से देखा जाए तो फकीर गलत था। लेकिन आध्यात्मिक रूप से देखा जाए तो फकीर को शायद आत्म ज्ञान हो चुका था। इसलिए वो उस जख्म के दर्द में भी सरल ही रह रहा था और जीवों के प्रति करुणा का भाव था। आप इस कहानी के बारे में क्या सोचते है, अपने विचार साझा करे comment box में।
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