सारिका भाग -4 | कहानी (Kahani)

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प पढ़ने जा रहे है  सारिका भाग -4 (Sarika part -4) की कहानी। सुबह के लगभग 7 बजे थे और बस मैकलोडगंज शहर के मुख्य चौराहे पर पहुंच चुकी थी। दिन अभी अभी निकला था। हरि ने अपना बैग उठाया और सारिका की तरफ एक बार देख कर बस से बाहर निकल गया। सारिका अपना एक बैग लेकर बस से बाहर आई और बस के luggage स्टोर से अपना दूसरा बैग निकालने की प्रतिक्षा करने लगी। हरि सारिका के पास गया और बोला, ठीक है सारिका..बाद में मिलते हैं। सारिका एकदम से बोली, अरे रुको यार..तुमको तो रूम पर जाने की ऐसी जल्दी है जैसे छुटियां मानने नहीं बल्कि ऑफिस के काम से आए हो..रुको मैं भी अपना दूसरा बैग लेकर चलती हूं..कोई तो चाहिए एक बैग उठाने के लिए। तभी हरि बोला, उधर रिक्शे वाला खड़ा है..उससे उठवा लो।  तभी शरारती अंदाज में सारिका बोली, बैग तो बच्चू तुम ही उठाओगे। सारिका के इतना कहते ही सब यात्री उन दोनों की तरफ ही देखने लगे। हरि को थोड़ा शर्म महसूस हुई। तभी सारिका शायद समझ गई और उसने तपाक से बात को संभालते हुए कहा, चाची को बोलूंगी कि हरि अभी भी मुझसे नाराज़ है और मेरी कोई मदद नहीं करता..चुप चाप बैग उठाओ वरना अभी फोन करके सब कुछ बता दूंगी चाची को।

हरि ने पता नहीं क्या सोचकर उसका एक बैग उठा लिया और सारिका के पीछे पीछे चलने लगा। सारिका फिर से बोली, पीछे पीछे क्यों चल रहे हो..साथ साथ चलो..तुमने कोई रूम बुक किया है क्या पहले से? हरि बोला, हां एक रूम बुक किया है लेकिन तुम अपने रस्ते जाओ और मैं अपने रस्ते जाता हूं। सारिका मुस्कुराते हुए बोली, बस इतने में ही हार गए एक लड़की से?...लगता है किसी लड़की से कभी पाला नहीं पड़ा तुम्हारा...अगर तुमको मुझसे दिक्कत हो रही है तो छोड़ो मेरा बैग और जाओ अपने होटल में...मैं रूम देख लूंगी खुद से। हरि बोला, अरे नहीं तुमको जहां जाना है छोड़ दूंगा तुम्हारा बैग। सारिका बोली, मुझे तुम अच्छे लगे..इसलिए तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं...अगर तुमको दिक्कत न हो। हरि बोला, चलो ठीक है, मैं भी अकेला घूम घूम कर थक गया हूं...लेकिन अगर मुझे तुम्हारे साथ रह कर ठीक महसूस नहीं हुआ तो तुम मुझे जाने से रोकेगी नहीं। सारिका बोली, मुझे मंजूर है जनाब..लेकिन पहले रह कर देख तो लो। ये बातें करते करते हरि का होटल भी आ गया था जिसमें उसने रूम बुक कर रखा था। दोनों ने रूम में check-in किया। रूम के बाहर एक बड़ी सी बालकनी थी और मैकलोडगंज शहर का पूर्व का हिस्सा वहां से अच्छा खासा दिखता था। अब लगभग सुबह के 8 बज चुके थे। दोनों ने निश्चय किया कि सुबह का नाश्ता करके ही आराम करेंगे। होटल में ही खाने का बंदोबस्त था। रिसेप्शन पर 4 आलू के परांठे और चाय का ऑर्डर किया। थोड़ी ही देर में परांठे और चाय आ गई और दोनों नाश्ता करके बिस्तर के एक कंबल में सो गए।

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अब सारिका का तो सारिका ही जाने लेकिन हरि के दिमाग में कोई शैतानी हरकत नहीं थी। लगभग 12 बजे हरि की नींद खुल गई। वैसे भी हरि को दिन के उजाले में नींद नहीं आती थी। बाथरूम से नल के पानी की आवाज सुनकर सारिका की नींद भी खुल गई। सारिका बिस्तर में लेटे हुए ही तेज़ आवाज में बोली, अभी उठ कर कौनसे ऑफिस में जा रहे हो...12 ही तो बजे हैं। हरि नहाते नहाते ही बोला, मुझे दिन में नींद नहीं आती..तुम सो जाओ सारिका। नल के पानी से बाल्टी भर रहा था...इसलिए पानी की आवाज से शायद तुम्हारी नींद टूट गई। और इसके बाद दोनों खामोश हो गए। हरि नहा कर कपड़े पहनकर बाथरूम से बाहर आ गया। बाथरूम से बाहर आकर देखा तो सारिका बेड पर ही कंबल में बैठी थी। हरि बोला, sorry यार.. मेरे नहाने की आवाज से तुम्हारी नींद टूट गई। सारिका बोली, कोई बात नहीं..दिन में ही नींद पूरी हो जाएगी तो फिर रात को नींद नहीं आएगी। हरि बोला, सारिका मैं बाहर थोड़ा घूम कर आता हूं..तुम चलोगी क्या? सारिका बोली, मन तो नहीं है अभी बाहर जाने का लेकिन अकेली रूम पर क्या करूंगी...5 मिनिट रुको..मैं भी शरीर पर थोड़ा पानी गिरा लेती हूं। सारिका ने बाथरूम में झांक कर देखा तो बोली, अरे पागल जब यहां पर बाथटब है तो बाल्टी में पानी क्यों भर रहे थे। हरि बोला, बस थोड़ा गर्म पानी शरीर पर गिराना था ताकि सुस्ती न रहे। सारिका बोली, चलो मैं भी थोड़ा गर्म पानी गिरा लेती हूं अपने आप पर। ये कहकर सारिका बाथरूम में चली गई...


Note - कहानी जारी रहेगी....

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