आप पढ़ रहे हैं सारिका भाग -5 (Sarika part -5) कहानी। सारिका नहाकर बाथरूम से बाहर आई तो एकदम सुबह की नई किरण के जैसी लग रही थी। वो अपने बैग से साज सज्जा का सामान निकाल रही थी और हरि उसको एकटक निहार रहा था। तभी सारिका बोली, मेरा शक सही था हरि। हरि ने हिचकिचाते हुए पूछा, कैसा शक? मुझे शक था कि तुम्हारी जिंदगी में कभी कोई लड़की नहीं आई...क्या मैं सही हूं?....सारिका ने हरि से पूछा। हरि बोला, तुम सही हो सारिका...कभी कोई लड़की दोस्त बनी ही नहीं...और आजकल तो अपने रूम में भी अकेला रहता हूं...कंपनी से रूम और रूम से कंपनी...बस यही जिंदगी रह गई है...और फिर जिस तरह की मेरी जिंदगी है...मुझे कौन लड़की चाहेगी? तभी बालों में जल्दी से कंघी कर के सारिका बोली, चलो अब मार्केट घूम कर आते हैं।
होटल से मार्केट सिर्फ 3 मिनट पैदल चल कर थी। तभी सारिका को एक Art and Craft की दुकान नजर आई और वो उस दुकान में कुछ खोजने लगी। हरि दुकान के बाहर सड़क के एक तरफ 2 बूढ़ी महिलाओं को देख रहा था। वो महिलाएं लाल और संतरी रंग के रेशमी धागों से एक कलाई पर बांधने वाला धागा बना रही थी। हरि ने उनमें से एक महिला से पूछा कि ये किस लिए बना रही हो। महिला बोली कि ये पवित्र धागा है..हम बनते हुए कुछ मंत्र पढ़ते है। हरि ने पूछा धागे का मूल्य पूछा तो महिला ने 25 रुपए बताया। हरि बोला, एक धागा बना दो। महिला ने पूछा, किस के लिए बनाना है..तुम्हारे लिए या किसी और के लिए ? तभी हरि को सारिका दिखाई दी जो कि आर्ट एंड क्राफ्ट की दुकान के बाहर रखी कुछ चीजों को देख रही थी। हरि ने महिला को कहा, वो जो लड़की (सारिका) दिख रही है न..उसके लिए बना दो। महिला ने पूछा, वो तुम्हारी घरवाली है क्या? हरि बोला, नहीं..अभी तो वो सिर्फ दोस्त है।
महिला ने धागा बनाना शुरू किया और लड़की का नाम पूछा। हरि ने बता दिया कि धागा सारिका के लिए बनाना है। महिला धागा बनाते बनाते हरि से बोली, तुम भी बनवा लो एक धागा। तभी हरि बोला, नहीं..मुझे धागे में विश्वाश नहीं..बस एक सारिका के नाम से बना दो। तभी सारिका भी वहां पर आ गई। हरि सारिका से बोला, तुम्हारे लिए पवित्र धागा बनवा रहा हूं। सारिका बोली, तुम नहीं बनवा रहे अपने लिए धागा? तभी धागा बनाने वाली महिला बोली, इनको तो विश्वास नहीं है धागे में। सारिका ने शरारती अंदाज में मुंह बनाया और बोली, आंटी..एक धागा और बना दो..हरि के लिए..मैं बोलूं और हरि धागा न पहने..ऐसा तो हो नहीं सकता। तभी महिला ने मुस्कुराते हुए हरि की तरफ देख कर पूछा, बनाऊं क्या। सारिका बोली, उनसे क्या पूछती हो आंटी..मैने बोल दिया बस बात खत्म। हरि चुप चाप खड़ा रहा।
महिला ने दोनों धागे बना दिए। सारिका हरि के नाम का धागा लेकर हरि से बोली, चुप चाप हाथ आगे करो..कोई मनमानी नहीं। हरि ने चुप चाप धागा बंधवा लिया। फिर सारिका अपने नाम का धागा हरि को थमाते हुए बोली, ये लो अब मेरी कलाई पर बांध दो धागा। हरि ने सारिका को धागा बांध दिया। फिर सारिका हरि से बोली, अब आंटी को 100 रुपए दो और हम दोनो की जोड़ी सलामत रहे ऐसा आशीर्वाद मांगों। हरि ने जेब से 100 रुपए निकाले और धागा बनाने वाली महिला को दे दिए। पैसे लेते हुए महिला बोली, तुम दोनों की जोड़ी सदा बनी रहे। तब हरि मुंह बनते हुए बोला, इससे तो अच्छा मुझे फांसी दे दो आंटी..दो दिन भी नहीं हुए हमको मिले और हुकुम तो देखो..घरवाली की तरह झाड़ रही। तभी सारिका और धागा बनाने वाली दोनों महिलाएं जोर से हंसने लगी। सारिका हरि के हाथ की उंगलियों में अपनी उंगलियां डालते हुए बोली, डायन हूं..इतनी आसानी से नहीं छोडूंगी। तभी हरि धागा बनाने वाली महिला से बोला, आंटी डायन भगाने का मंत्र तो बोल दिया न आपने धागे में..पता नहीं कब पीछा छूटेगा इस डायन से। सारिका बोली, चल चल..अभी और मार्केट भी घूमनी है। सारिका और हरि धागा बनाने वाली महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए वहां से चले गए।
Note - कहानी जारी रहेगी..
0 टिप्पणियाँ