पीर की सवारी | भूतिया कहानी (Bhutiya kahani)

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क अजीब भूतिया कहानी (Bhutiya kahani)सुनी थी मैने एक बुजुर्ग से। आज सोचा की आपको भी उस कहानी से वाकीफ करवा दिया जाए। ये घटना कितनी सच है ये तो मैं भी नहीं जानता। कहानी का शीर्षक है, पीर की सवारी। कहानी बुजुर्ग के बाप की है जोकि अब इस दुनिया में नहीं है। कहानी के पात्र का नाम ,धन्ना, है। जो भी बुजुर्ग ने मुझे बताया था उसके पिता , धन्ना, के बारे में, वैसा ही मैं यहां वर्णन करने जा रहा हूं।

धन्ना को उस रात खेतों में पानी देना था। बिजली रात को ही आती थी , इसलिए बिजली आने के समय तक खेतों में रुकना पड़ता था। ये कोई पहली बार नहीं हुआ था। हर फसल के मौसम में ऐसा होता था। उस रात भी धन्ना अपनी फसल में पानी देने के लिए रुका हुआ था। लगभग रात के 11 बजे बिजली आई। उसने पानी का स्रोत शुरू कर दिया और इंतजार करता रहा खेतों में पर्याप्त पानी भरने तक। 12 बजे तक खेतों में पानी भर गया और धन्ना ने पानी का स्रोत बंद कर दिया। थोड़ी देर और खेतों की जांच करने के पश्चात वह घर की और जाने के लिए सोचने लगा।

धन्ना के खेत बस्ती से दूर थे। लगभग आधा घंटा लग जाता था बस्ती से खेतों तक पैदल जाने में। अविकसित क्षेत्र था, कोई Street light नहीं, हर तरफ जंगल सा महसूस होता था। काली अंधेरी रात और चारों तरफ बियाबान। तभी दूर से एक रोशनी दिखाई दी तथा साथ में उसके कुछ संगीत की आवाज भी आ रही थी। अभी धन्ना की आंखें जायजा नहीं लगा पा रही थी कि ये महोत्सव है क्या? जैसे ही धन्ना की आंखों ने दूर से उस झांकी को देखा, धन्ना समझ गया कि ये तो पीर बाबा की सवारी है। धन्ना डर गया क्योंकि उसने सुना था की जो भी पीर की सवारी के बीच में आता है वो मर जाता है।

डरते हुए धन्ना को कुछ सूझ नही रहा था। उसके पास छिपने का समय भी ज्यादा न था। मार्ग के दोनो तरफ खेतों में भी नही छिप सकता था क्योंकि फसल अभी छोटी थी, धन्ना आसानी से दिखाई फसल में दिखाई दे जाता । तभी उसको पास का एक बरगद का पेड़ दिखा। धन्ना तेजी से उस पेड़ पर चढ़ गया। वह दर के मारे पसीने से नहा चुका था, मौत का डर सबको होता है। जैसे ही वो रोशन पेड़ के पास आई, धन्ना ने देखा कि रोशनी तो एक घोड़े पर बैठे किसी व्यक्ति को है, आभा के जैसी, घोड़े के सामने एक व्यक्ति मार्ग को साफ करता चल रहा है तथा घोड़े के पीछे दो व्यक्ति चल रहे हैं।

ये सब दृश्य देखकर धन्ना को अपनी मौत साक्षात दिख रही थी। पेड़ के नीचे से गुजरते घोड़े के पीछे वाले दो व्यक्तियों में से एक एक व्यक्ति ने दूसरे को कहा, तुमने उसको प्रसाद नहीं दिया। दूसरा व्यक्ति बोला, किसको देना है प्रसाद, मुझे तो कोई नहीं दिख रहा। पहला व्यक्ति बोला, वो जो पेड़ पर बैठा है। दुसरे व्यक्ति ने कहा, ओह उसे तो भूल गया, अभी दे देता हूं उसको भी परसाद। दूसरे व्यक्ति ने झोली से कुछ निकला और अपनी बाजू को इतना लंबा किया की पेड़ पर बैठे धन्ना के पास हाथ पहुंच गया और बोला ये ले, अपने गमछे में डाल ले। डरते हुए धन्ना से झट से गमछा आगे किया और परसाद उसमे डलवा लिया। धन्ना बस बेहोश ही होने वाला था,ये सब देख कर।

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धन्ना ने होश तब संभाला जब वो पीर की सवारी दूर चली गई। धन्ना तेजी से पेड़ से नीचे उतरा और घर की तरफ जल्दी जल्दी भागा। अपने घर जाकर किसी को कुछ बताए बगैर अपने बिस्तर पर सो गया। सुबह देर तक सोता रहा। उसकी पत्नी पहले उठ गई। पत्नी ने उसका गमछा धोने लिए उठाया तो उसमे कोयले के कुछ टुकड़े मिले। पत्नी मन ही मन बोली, पता नहीं बेवकूफ आदमी क्या क्या इक्कठा करता रहा है, यह बोलकर कोयले को नाले में गिरा दिया। धन्ना सोकर उठा तो उसे रात को घटना याद न रही। दिन में अपने दोस्तो के पास गया तो उसे वो घटना याद आगयी।  धन्ना ने सारी बात अपने दोस्तों को बता दी। धन्ना के दोस्त बोले वो गमछा कहां है अब? धन्ना बोला की गमछा घर पर है। दोस्त बोले, जा लेकर आ गमछा।


धन्ना घर गया और गमछा ढूंढने लगा। अपनी पत्नी से पूछा तो पत्नी ने बताया कि कोयले तो नाले में गिरा दिए। धन्ना बोला, ये तुमने क्या किया, वो तो पीर का परसाद था। लेकिन अब कोई कुछ नही कर सकता था। दोस्तों को सारी बात बताई तो दोस्त उसकी बदकिस्मत बोल रहे थे। शायद ये पीर बाबा की ही ख्वाइश रही हो या फिर उसकी धन्ना का दुर्भाग्य।

दोस्तों आपको ये भूतिया कहानी (Bhutiya kahani)कैसी लगी। इस कहानी की सत्यता आपके विवेक और अनुभव पर निर्भर करती है। यदि आपके साथ भी कभी ऐसी घटना हुई हो तो comment box में जरूर बताएं, धन्यवाद।

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