आज मैं आपको एक retired फौजी की कहानी (kahani) सुनाने जा रहा हूं। शीर्षक है, फौजी की आखरी ख्वाइश (Fauji ki aakhri khwaish)। यह एक दुखद घटना है। एक बार एक retired फौजी था। उसका हर रोज़ का समय उसकी उम्र के दोस्तों में बैठकर बीता करता था। जिंदगी अच्छी चल रही थी। उसी मोहल्ले में एक राजनीतिक इंसान भी रहता था। अब फौजी ठहरा अड़ियल इंसान, जैसे फौज में सीखाया जाता है और राजनीतिक व्यक्ति के बारे में तो मुझे बताने की जरूरत ही नहीं, हम सब जानते है, ऐसे लोगों के बारे में।
राजनीतिक इंसान ने पास के शमशान में, मुर्दा जलाने वाली जगह के ऊपर एक छप्पर बनवाया था। अब राजनीति करनी है तो समाज में कुछ सेवा तो दिखानी ही पड़ती है। एक बार फौजी और राजनीतिक इंसान में एक महफिल में बैठे बैठे बहस हो गई। बहस के चलते फौजी ने कहा की अगर मैं मर जाऊ तो मेरे मृत शरीर को इस राजनीतिक इंसान के बनवाए हुए छप्पर के नीचे मत जलाना। दिन गुजरते रहे और कुछ साल बाद फौजी की मृत्यु हो गई।
अब फौजी की इच्छा के अनुसार उसका देह संस्कार करना था। लेकिन 2 दिन से इतनी बरसात हो रही थी की सब कुछ गीला था और न ही बरसात रुकने के लक्षण दिखाई दे रहे थे। रात को फौजी की मृत्यु हुई, रात को देह संस्कार नहीं करते। घरवालों ने सोचा की अभी तो बहुत समय है, कल का पूरा दिन है, बरसात रुकने के लिए बहुत समय है और रिश्तेदारों को आने के लिए समय भी मिल जाएगा। लेकिन सारी रात बरसात ही चलती रही। सुबह हुई, रिश्तेदार इक्कट्ठा होने लगे। लेकिन बरसात रुकने का नाम नहीं ले रही थी। सभी लोगो ने शाम तक इंतजार किया कि फौजी की आखरी इच्छा को पूरा किया जाए, जोकि राजनीतिक इंसान के द्वारा बनवाए गए छप्पर के नीचे नहीं जलना चाहता था। लेकिन बरसात न रुकने के कारण, फौजी का अंतिम संस्कार उसी छप्पर के नीचे करना पड़ा।
दोस्तों विधि के विधान को तो श्रृष्टि को बनाने वाला ही जानता है। लेकिन अगर किसी की आखरी इच्छा भी पूरी न हो तो इससे बड़ा दुर्भाग्य मेरे ख्याल से तो ओर कुछ नही होता। इस कहानी (kahani) ke comment box में कुछ न भी लिखो, तो भी कोई बात नहीं, कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद।
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