सारिका | कहानी (kahani)

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कहानी है एक आत्म निर्भर लड़की की जिसका नाम था सारिका, जो कि हमारे लेख का शीर्षक भी है। इस कथा के दूसरे पात्र का नाम हरि है। ये सारा किस्सा पूरी तरह से हरि की जुबानी सुनाया गया है। आशा करता हूं कि आप लोग इसको पढ़कर गंभीर नहीं बल्कि अपने दिल में किसी को याद करते हुए इस लेख का आनंद लेंगे। रोमांच शुरू करने से पहले आपको हरि से थोड़ा सा परिचित करवा देता हूं। हरि एक घुमक्कड़ किस्म का व्यक्ति है। खास पढ़ा लिखा न होने के कारण कंपनियों में सुपरवाइजर की नौकरी करता था। जहां तक सवाल सारिका का है तो इसमें आखिरी तक आप लोग सारिका से ही परिचित होने वाले हैं। वैसे आप लोगों को बताना चाहूंगा कि सारिका का मतलब राज करने वाला होता है। तो चलिए अब शुरू करते हैं। बाकी बातें लेख के बीच में ही बताता रहूंगा।

हरि उन दिनों भी हरिद्वार की किसी दवाइयों की कंपनी में कार्यरत था। लेकिन घुमक्कड़पन की आदत से मजबूर उस दिन उसने निर्णय किया कि कुछ दिन के लिए कहीं घूम आया जाए। गूगल पर नक्शा देखा तो उसके दिमाग में मैकलोडगंज आया जो कि एक पहाड़ी क्षेत्र है। हरि पहले भी एक बार वहां बहुत समय पहले जा चुका था। अपने फोन पर शाम 7 बजे टूरिस्ट बस का समय देख कर उसकी एक सीट ऑनलाइन बुक कर दी, जो कि ऋषिकेश से मैकलोडगंज जाने वाली थी। शाम को 5 बजे वह हरिद्वार से ऋषिकेश आ गया और टूरिस्ट बस ऑफिस के पास 7 बजने का इंतजार करने लगा। 7 बजने से 15 मिनट पहले वहां बस आई और वहां पर खड़े हुए यात्रियों ने अपना समान बस में रखना शुरू कर दिया। हरि जल्दी से पास की दुकान से 2 सिगरेट और कुछ खाने की नमकीन चीजें खरीद लाया। अब आप सोच रहे होंगे कि 2 सिगरेट क्यों? क्या सिगरेट का पैकेट खरीदने के पैसे नहीं थे? जी नहीं बात ये नहीं है। कारण ये था कुछ दोस्तो की संगति में वो कुछ ज्यादा ही सिगरेट पीने लगा था। कुछ महीनों से उसने तय किया था कि सिर्फ 2 सिगरेट ही रखा करेगा और जब बिल्कुल सब्र न होगा, तब पिया करेगा।

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बस चलने का समय हो गया था। बस चालक ने हॉर्न बजाकर सबको सचेत किया कि अगर कोई बस के बाहर गया हो तो जल्दी से बस के भीतर आ जाए। हरि भी जल्दी से बस में चढ़ गया और अगले ही पल बस चलने लगी। चारों तरफ यात्री थे लेकिन हरि इस बार भी हमेशा की तरह अकेला ही सफर कर रहा था। अब किसी के पास उसके अनुसार घूमने का समय तो था ही नहीं, तो वो अकेला ही सफर करता था। ज्यादातर शनिवार और रविवार को उसका कहीं घूमना होता था। कंपनी के काम के बाद शाम को कमरे पर भी वो अकेला ही रहता था जबकि कंपनी के दूसरे लोग 3 या 4 लोग एक कमरे में रहते थे। लेकिन उसकी दोस्त बनाने की आदत न थी। कुछ दोस्त उसके गांव में थे तो बस उन्हीं से कभी कभी फोन पर बात कर लेता था। नए दोस्त बनाने की कला तो जैसे वो भूल ही गया था। सफर में वह बस की खेड़की से बाहर ही देखता रहता था लेकिन इस वक्त बाहर अंधेरा होने लगा था तो बाहर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। थोड़ी ही देर में बस देहरादून में एक जगह रुक गई। आस पास तिब्बती माहौल था। शायद वहां बस को कुछ और सवारियों का इंतजार करना था। बस ड्राइवर बोला कि बस यहां पर 15 मिनिट रुकेगी, अगर किसी को खाना पीना हो या हल्का होना हो तो जा आइए।

हरि को तो सिगरेट की तलब थी। पास में कुछ झाड़ियां थी जहां पर सब लोग हल्का ( toilet ) होने के लिए जा रहे थे। वह भी बस से बाहर गया और झाड़ियों के बाहर ही एक कौने में खड़ा होकर अपनी सिगरेट जलाई और कश लगाने लगा। अभी 2 कश ही लगाए थे कि बस से एक आकर्षक युवती बाहर आती दिखाई दी। लेकिन हरि ने उस युवती की तरफ ज्यादा ध्यान न देते हुए अपनी सिगरेट को होठों से लगाया और कश खींचने लगा। लेकिन ये क्या, युवती के पग तो झाड़ियों की तरफ न जाकर हरि की तरफ आ रहे थे। भला ये मेरी तरफ क्यों आ रही है, मैने तो इसको पहले कभी देखा भी नहीं, हरि उस क्षण बस यही सब सोच रहा था।....

Note - ये कहानी जारी रहेगी...

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